परिचय शिक्षायें आश्रम
दरिया साहब
ग्रन्थ संग्रह
शिक्षायें

सत्गुरु दरिया साहब के सिद्धांत

  1. एक सत्पुरुष ब्रम्ह की उपासना करो। वही इस जीव का एकमात्र उद्धारक है।

  1. वह सत्पुरुष ब्रम्ह अनादि और नानात्व से परे सदा एक है।

  1. वह सत्पुरुष ब्रम्ह, शाश्वत, अखण्ड, अजन्मा, अवतार से परे, सत स्वरुप, एक रस, निर्गुण-सगुण से परे, माया गुणातीत, सर्वज्ञ, अखिल ब्रम्हाण्ड का द्रष्टा, परम दयालु, सर्वजुणागार, सर्व सामर्थ्य, दिव्य-चक्षु द्वारा दर्शन-सुलभ तथा पहचान में आने वाला है।

  1. वह सत्पुरुष ब्रम्ह ईश्वर या परमेश्वर से परे और उससे श्रेष्ठ है। पारमार्थिक सत्ता वाला है।

  1. ईश्वर व्यवहारिक सत्ता वाला है। सृष्टि सृजन करना, पालन करना और संहार करना उसका कार्य है। ईश्वर की एक संज्ञा आदि ब्रम्ह है। वही आदि ब्रम्ह माया की विभूति धारण कर ईश्वर की उपाधी ग्रहण करता है। ईश्वर की उपासना से सावधि मुक्ति प्रप्ति होती है। पुण्य भोग के पश्चात मृत्यु लोक में आना पड़ता है। इस प्रकार पुनः पुनरागमन चक्र चालू हो जाता है।

  1. सत्पुरुष ब्रम्ह की उपासना से अचल निर्वाद पद प्राप्त होगा, जो सावधि से परे और चारों प्रकार की मुक्ति से श्रेष्ठ है।

  1. जीव की भी एक संज्ञा ब्रम्ह है जो अद्वैत-ब्रम्ह के अर्थ में प्रयुक्त है। अद्वैत का अर्थ यह है कि सभी जीवात्मा चाहे, वए किसी योनि के भुक्त हों सभी एक हैं। भिन्न-भिन्न नहीं हैं। सत्पुरुष(अनादि-ब्रम्ह), ईश्वर(आदि ब्रम्ह) और जीव तीनों क अस्तित्व अपना है। तीनों अलग-अलग हैं। तीनों अविनाशी हैं।

  1. जीव, ईश्वर या सत्पुरुष को प्राप्त कर सकता है। किन्तु जीव कभी भी ईश्वर या सत्पुरुष ब्रम्ह नहीं हो सकता है।

  1. सच्चा अहिंसक सत्यवादी ही सत्पुरुष की उपासना करने का अधिकारी है। इसलिये सदा सत्य बोलो और प्राणी मत्र पर दया बर्तो।

  1. कार्य-फलासक्ति ही बन्धन का कारण है। इसलिये निष्काम्भाव द्वारा सकाम कर्मों का त्याग करो।

  1. सारे प्राणी मात्र की आत्मा को एक हीं जीवात्मा की एक-एक इकाई समझो या अपने ही आत्मा का प्रतिरुप हरेक प्राणी की आत्मा को समझो।